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कहार की जनसंख्या कितनी है – Kahar Ki Jansankhya Kitni Hai

By Proud Skill

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कहार की जनसंख्या कितनी है – Kahar Ki Jansankhya Kitni Hai : नमस्कार दोस्तों, आपको स्वागत है हमारे इस Blog पर, जहापर आज हम आपको बताएँगे “कहार की जनसंख्या कितनी है – Kahar Ki Jansankhya Kitni Hai”। भारत एक विशाल देश है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत दुनिया का सातवा सबसे बड़ा देश है। अगर जनसंख्या की बात करे तो दुनिया में भारत चीन के बाद दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है।

भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या बाला और दुनिया का सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष देश है। धर्म की बात करें तो दुनिया का हर धर्म मानले बाले लोग भारत रहते है। भारत की इस बिसाल जानसंख्या की ज्यादातर हिन्दू धर्म को मानले बाले लोग है। हिन्दू धर्म में बहुत सारे जाती है, जिसमें एक जाती है — “कहार Kahar)”। आजके इस आर्टिकल में हम बात करेंगे — कहार की जनसंख्या कितनी है – Kahar Ki Jansankhya Kitni Hai. तो चलिए जानते है की — कहार की जनसंख्या कितनी है – Kahar Ki Jansankhya Kitni Hai.

कहार कौन है — Kahar Koun Hai

कहार को संस्कृत में स्कंधहार कहते हैं। जिसका तात्पर्य होता है, जो अपने कंधे पर भार ढोता है। दरअसल कहार वह जनजाति है, जो कृषि का काम करती थी। खासतौर से पानी के तालाब में सिंघाड़े की पैदावार करने, मछली पकड़ने और पालकी ढोने तथा घरेलु नौकर के रूप में कार्य करना कहारों का मुख्य पेशा हुआ करता था। इस जाति के लोग उलॆखित कार्य करते हुए पाए जाते थे। यही इनका परम्परागत पेशा था। विभिन्न प्रकार के कार्यों को इनके द्वारा किये जाने के कारण स्वाभाविक है कि अलग -अलग जातियां एवं उपजातियां भी अलग -अलग नामो से अस्तित्व में आ गई होंगी।

आज हम इस तरह के कार्य करने वालो को अनेक नामों से जानते हैं। कहार जाति के लोगों को महरा ( जो संस्कृत शब्द महिला से लिया गया है ) के नाम से भी जाना गया है। घरेलु काम करने से महिलाओं के बीच रहने के कारण ही इन्हें ‘महरा’ कहा गया। चूँकि इन्हें अपने मालिक के घर में , जिनके यहाँ यह यह काम करते थे, मालकिन के शयनकक्ष और महिलाओं के बीच जाने की अनुमति होती थी। महिलाओं के बीच रहने के कारण इनका नाम महरा पड़ गया।

कहार को धीमर के नाम से भी जाना जाता है। जोकि संस्कृत के शब्द धीवर से लिया गया है। तात्पर्य यह है कि कहार और धीमर एक ही जाति है नहीं की अलग – अलग। बुंदेलखंड में पहले कहार को मछ्मारा के नाम से जाना जाता था, अर्थात जो मछली मारने या पकड़ने का रोजगार करता हो। कई अन्य छेत्रों में इन्हें सिंघरियां भी कहा गया है। यह नाम इनके द्वारा सिंघाड़े उत्पादन करने के कारण मिला।

कहार की जनसंख्या कितनी है – Kahar Ki Jansankhya Kitni Hai

कहार की जनसंख्या कितनी है

बिहार, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में रहने वाले लोग मगध के पौराणिक राजा जरासंध से अपने वंश का दावा करते हैं, जो बिहार का प्राचीन नाम है। रिस्ले के अनुसार, ‘कहर’ नाम हिंदी शब्द कंधा (कंधे) और भार (बोझ) से लिया गया है, और ‘जो अपने कंधों पर बोझ ढोता है’ को दर्शाता है, जो पालकी धारण करने के उनके पारंपरिक व्यवसाय की ओर इशारा करता है। एक अन्य संस्करण में कहा गया है कि उनके समुदाय का नाम हिंदी शब्दों, कंधा (कंधे) और आहार (भोजन) से लिया गया है, जिसका अर्थ है, ‘कंधे से आजीविका की कमाई’ – उनके पारंपरिक व्यवसाय का एक और विवरण।

कहार का बड़ा समुदाय उत्तर भारतीय राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, राजस्थान और पश्चिम बंगाल और केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली में वितरित किया जाता है। उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 35 लाख से अधिक है, वे सुदूर पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में भी पाए जाते हैं। पुरे भारत में कहार की कुल जनसंख्या 9,608,000 है।

उत्तर प्रदेश में करीब 13 फीसदी से ज्यादा कहार समुदाय की आबादी है। बिहार में कहार समुदाय की जनसंख्या 7 फिसदी है। राजस्थान मे कहार समाज की 25 लाख से अधिक जनसंख्या है, जो कि काफी पिछडे व गरीब हैं।

कहार जाती का उदभाब कैसे हुआ – कहार जाती का इतिहास क्या है (History of Kahar in Hindi)

कहार (अंग्रेजी: Kahar) भारतवर्ष में हिन्दू धर्म को मानने वाली एक जाति है। यह जाति यहाँ हिन्दुओं के अतिरिक्त मुस्लिम व सिक्ख सम्प्रदाय में भी होती है। हिन्दू कहार जाति का इतिहास बहुत पुराना है जबकि मुस्लिम सिक्ख कहार बाद में बने। इस समुदाय के लोग बिहार, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही पाये जाते हैं!

कहार स्वयं को कश्यप नाम के एक अति प्राचीन हिन्दू ऋषि के गोत्र से उत्पन्न हुआ बतलाते हैं। इस कारण वे अपने नाम के आगे जातिसूचक शब्द कश्यप लगाने में गर्व अनुभव करते हैं।बैसे महाभारत के भिष्म पितामह की दुसरी माता सत्यवती एक धीवर(निषाद)पुत्री थी,मगध साम्राट बहुबली जरासंध महराज भी चंद्रवंशी क्षत्रिय ही थे!

बिहार,झारखंड,पं.बंगाल,आसाम में इस समाज को चंद्रवंशी क्षत्रिय समाज कहते है!रवानी या रमानी चंद्रवंसी समाज या कहार जाति की उपजाति या शाखा है। यह भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से पायी जाती है। श्रेणी:जाति”कहर” शब्द को खंडित कर कहार शब्द बना है।,कहर का एक इतिहास रहा है।

महाभारत काल मे जब भारत का क्षेत्र फल अखण्ड आर्यबर्त में हुआ करता था,उस समय डाकूओ का प्रचलन जोरो पर था,आज भी हमलोग देख सकते है,पर नाम बदलकर डाकू के जगह फ्रोड, जालसाज, घोटाले,छिनतई ने ले रखी है।

खैर उस समय डाकुओ द्वरा दुल्हन की डोली के साथ जेवरात लूटना एक आम बात थी,लोग भयभीत थे,अइसे में कहर टीम का गठन किया गया था,डोली लुटेरों के रक्षा हेतुं, दुल्हन की डोली के साथ कहर टीम जाती थी और उनकी रक्षा करते हुवे मंजिल तक पहुँचते थे।

आप सब ध्यान दे तो शादी की कार्ड पर डोली के आगे और पीछे तलवार लिए कुछ लोग की चित्रांकन देखने को मिलेगा, समय बीतता गया और शब्दों में परिवर्तन होता गया,कहर से कहार बन गया, कहर टीम को जब डोली के साथ जाना ही था,रोजगार और आर्थिक जरुरतो के पूर्ण के लिए कुछ लोग डोली भी खुद ही उठाने का निर्णय लिए थे यही इतिहास रहा है।

कहार को संस्कृत में ‘स्कंधहार ‘ कहते हैं….जिसका तात्पर्य होता है,जो अपने कंधे पर भार ढोता है…अब आप ‘डोली’ (पालकी) उठाना भी कह सकते हो…जोकि ज्यातर हमारे पुर्वज राजघराने की बहु-बेटी को डोली पे बिठाकर एक स्थान से दुसरे स्थान सुरक्षा के साथ वीहर-जंगलो व डाकुओ व राजाघरानें के दुश्मनों से बचाकर ले जाते थे…कर्म संबोधन कहार जाति कमजोर नहीं है…ये लोग अपनी बाहु-बल पे नाज करता है…और खुद को बिहार,झारखंड,प.बंगाल,आसाम में चंद्रवंशी क्षत्रिय कहलाना पसंद करते है…ये समाज जरासंध के वंसज़ है।

कहार की पौराणिक इतिहास – कहार की पौराणिक महत्ब क्या है

एक प्राचीन किवदंती प्रचलित है कि कहार जाति के लोग ब्राह्मण को अपने अध्यात्मिक गुरु के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। कहते हैं एक दिन नारद मुनि गुरु की खोज में श्री रामचन्द्रजी के पास गए। श्री रामचन्द्रजी ने कहा कि कल सुबह तुम्हारी गुरु से मुलाकात हो जाएगी। सुबह जिस व्यक्ति से तुम्हारी प्रथम मुलाकात होगी वही तुम्हारा गुरु होगा। अतः मुनि नारद ने रामचन्द्रजी के कथनानुसार जो व्यक्ति सुबह सबसे पहले मिला , झुककर उसे प्रणाम किया एवं गुरु कहकर उसे संबोधित किया। लेकिन शीघ्र ही नारद मुनि ने देखा कि जिस व्यक्ति को मैंने गुरु माना है वह व्यक्ति तो धीमर कहार जाति का मछुआरा है। उसके कंधे पर मछली मारने वाला जाल है। इससे प्रतीत हुआ कि वह मछली मारने का रोजगार करने वाला व्यक्ति है। नित्यप्रति की भांति वह मछली मारने जा रहा था। नारद मुनि ने विचार किया और सोचा कि इसको मै अपना गुरु कैसे मान सकता हूँ और कहा कि मै तुम्हे अपना गुरु नहीं मानता।

नारद की इस बात पर कहार ने क्रोधित होकर शाप दे दिया कि तुम्हे स्वर्ग में जाने के लिए 84 लाख योनियों से गुजरना पड़ेगा। कहार के उस शाप से नारद मुनि काफी परेशान और चिंतित हो गए और रामचन्द्रजी से असंतोष प्रकट किया। मगर रामचंद्रजी ने उन पर धयान नहीं दिया। तब नारद मुनि ने जमीन पर 84 लाख जीव -जंतुओं , कीड़े -मकोड़े के चित्र बनाकर उनका श्रदापूर्वक एक बार चक्कर लगाया। उसके बाद उस कहार से हाथ जोड़कर प्रार्थना और याचना की कि वे उन्हें माफ़ कर दे। मुझसे अनजाने में बहुत बड़ी भूल हो गई थी अब में आप को अपना गुरु स्वीकार करता हूँ एवं गुरु कहकर संबोधित किया। उसी समय से धीमर कहार जाति के लोग स्वयं को ब्राह्मणों का गुरु मानते हैं। ब्राह्मणों को अपना गुरु स्वीकार नहीं करते बल्कि जोगी को अपना गुरु मानते हैं।

कहार का धर्म और मान्यता क्या है

कहार का धर्म हिंदू धर्म है। वे शिव (हिंदू त्रिमूर्ति में विध्वंसक), विष्णु (संरक्षक), लक्ष्मी (धन की देवी और विष्णु की पत्नी), काली और अन्य क्षेत्रीय और स्थानीय देवताओं जैसे हिंदू धर्म के देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। बिहार में वे विष्णुपद, मंगलगौरी, कालेसरी देवी और धाकर्णी माई को अपने क्षेत्रीय देवताओं के रूप में पूजते हैं, जबकि सांपों से जुड़ी क्षेत्रीय देवी मनसा देवी बहुत लोकप्रिय हैं, खासकर उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कहार के बीच। दादरा और नगर हवेली में, गोत्रेज उनके कुल देवता हैं जबकि अंबा माता ग्राम देवता हैं। दिल्ली के कहार संत कालू बाबा (संत काले पिता) के लिए बहुत श्रद्धा रखते हैं, जिनका जन्मदिन वे सालाना मनाते हैं।

राजस्थान में, रानी सती (रानी सती, जिन्होंने अपने पति की चिता पर आत्मदाह कर लिया), सखंबरी देवी, जीन माता, जोबनेर की माता और भेरू देव की पूजा की जाती है। यहां कहार ने बालाजी, हनुमान (बंदर देवता) और शिव को समर्पित कई मंदिरों का निर्माण किया है। मुस्लिम संतों के मकबरे भी पूजे जाते हैं। कुछ कहार आर्य समाज और राधास्वामी जैसे गुरु-प्रधान संप्रदायों में शामिल हो गए हैं जो मोक्ष प्राप्त करने के लिए पवित्र और सरल जीवन पर जोर देते हैं।

कहार सभी प्रमुख हिंदू त्योहारों जैसे महा शिवरात्रि (शिव की महान रात), जन्माष्टमी (कृष्ण का जन्मदिन), होली (रंगों का त्योहार), और नवरात्रि मनाते हैं। यह नौ दिनों तक चलने वाला त्योहार है जो शरद ऋतु विषुव से जुड़ा है और कई अनुष्ठानों के दौरान किया जाता है।

कहार अपने जन्म, विवाह और मृत्यु की रस्मों के लिए ब्राह्मण पुजारियों की सेवाएं लेते हैं। वे अपने मृतकों का अंतिम संस्कार करते हैं और उनकी राख को एक नदी में विसर्जित करते हैं, अधिमानतः गंगा जिसे पवित्र माना जाता है। पशु बलि और पूर्वजों की पूजा भी प्रचलित है।

कहार गहरे धार्मिक हैं, कई देवी-देवताओं की पूजा के माध्यम से मोक्ष की तलाश करते हैं, मंदिरों और मंदिरों में पूजा करते हैं, रक्त बलिदान करते हैं, पूर्वजों की पूजा करते हैं, तीर्थयात्रा करते हैं और यहां तक ​​कि उनके गुरु-प्रधान संप्रदायों या मुस्लिम कहार के अनुष्ठानों में भी, उनका जीवन है। शांति और भय से मुक्ति पाने के साधन के रूप में सेवा में बिताया।

कहार संप्रदाय कौन कौनसी प्रथाएँ मानते है

  • बाल और वयस्क विवाह दोनों को स्वीकार्य माना जाता है, हालांकि वयस्क विवाह लोकप्रिय हो रहे हैं। विवाह माता-पिता और बड़ों के बीच बातचीत द्वारा तय किए जाते हैं, और बहुत कम मामलों में (ज्यादातर शहरों में) यह जोड़े की आपसी सहमति से होता है। मोनोगैमी आम है, हालांकि कुछ मामलों में बहुविवाह की अनुमति है। यदि ऐसा मैच उपलब्ध हो तो जूनियर लेविरेट और जूनियर सोरोरेट का अभ्यास किया जाता है और पसंद किया जाता है।
  • सिंदूर, कांच या लाख की चूड़ियाँ और अंगूठियाँ विवाह के प्रतीक हैं जिनका कड़ाई से पालन किया जाता है। विधवाओं, विधुरों और तलाकशुदाओं के लिए पुनर्विवाह की तरह ही तलाक की अनुमति है।
  • समुदाय विस्तारित परिवारों में रहता है। संपत्ति पुरुषों द्वारा विरासत में मिली है और बेटों के बीच समान रूप से विभाजित है; ज्येष्ठ पुत्र घर के मुखिया के रूप में सफल होता है।
  • यद्यपि कहार महिलाओं को पुरुषों की तुलना में एक माध्यमिक दर्जा प्राप्त है, वे ईंधन, चारा और पानी इकट्ठा करके और घर के सभी कामों का प्रबंधन करके खेतों और पशुपालन में मदद करती हैं। वे सीधे परिवार की आय में भी योगदान करते हैं और सामाजिक, अनुष्ठान और धार्मिक क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। उत्सव के अवसरों पर पुरुषों और महिलाओं द्वारा अलग-अलग लोकगीत गाए जाते हैं।
  • कहार में सामुदायिक परिषदें हैं जो विभिन्न स्तरों पर कार्य करती हैं। बिहार में उन्हें पंचायत कहा जाता है और इसका नेतृत्व एक परिषद प्रमुख करता है।
  • राजस्थान में इन परिषदों को एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष के साथ अपने पदाधिकारियों के रूप में मंदिर संगठनों में बदल दिया गया है। यदि सामुदायिक मानदंडों का कोई उल्लंघन होता है, तो मंदिर प्रांगण में एक बैठक आयोजित की जाती है और सुधारात्मक उपायों पर निर्णय लिया जाता है।
  • राजस्थान में, कहार सहित कई समान समुदायों ने अपने कल्याण और प्रगति के लिए एक संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए कश्यप निषाद समाज नामक एक छत्र संगठन का गठन किया है।
  • दादरा और नगर हवेली में कहार समाज है जो ग्राम स्तर पर सामाजिक नियंत्रण का प्रयोग करता है और इसका नेतृत्व वोट द्वारा चुने गए प्रमुख द्वारा किया जाता है। दिल्ली में बुजुर्गों की एक तदर्थ परिषद है जिसने एक मजबूत जाति परिषद की जगह ले ली है।

कहार संप्रदाय का अन्य नाम क्या है

कहार को संस्कृत में ‘स्कंधहार ‘ कहते हैं….जिसका तात्पर्य होता है,जो अपने कंधे पर भार ढोता है…अब आप ‘डोली’ (पालकी) उठाना भी कह सकते हो…जोकि ज्यातर हमारे पुर्वज राजघराने की बहु-बेटी को डोली पे बिठाकर एक स्थान से दुसरे स्थान सुरक्षा के साथ वीहर-जंगलो व डाकुओ व राजाघरानें के दुश्मनों से बचाकर ले जाते थे…कर्म संबोधन कहार जाति कमजोर नहीं है…ये लोग अपनी बाहु-बल पे नाज करता है…और खुद को बिहार,झारखंड,प.बंगाल,आसाम में चंद्रवंशी क्षत्रिय कहलाना पसंद करते है…ये समाज जरासंध के वंसज़ है।

बुंदेली भोई; चंद्रबंसी; चंद्रवम्सम; धीमर; धीमर; धुरिया; गुरिया; गुरिया; झीमार; झिमर; झिंवर; कहार भोई; कहार; कामकर; कश्यप राजपूत; कीर; कीर; मल्लाह; मल्लन; मेहरा; निखड; निषाद; राज भोई; रमानी; रावनी; कहर

हमारा अंतिम शब्द

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