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पश्चिमी मरुस्थल का क्षेत्रफल कितना है – Paschimi Marusthal Ka Kshetrafal Kitna Hai

By Proud Skill

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पश्चिमी मरुस्थल का क्षेत्रफल कितना है – Paschimi Marusthal Ka Kshetrafal Kitna Hai : नमस्कार दोस्तों, आपको स्वागत है हमारे इस Blog पर, जहापर आज हम आपको बताएँगे “पश्चिमी मरुस्थल का क्षेत्रफल कितना है – Paschimi Marusthal Ka Kshetrafal Kitna Hai. भारत एक विशाल देश है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत दुनिया का सातवा सबसे बड़ा देश है। अगर जनसंख्या की बात करे तो दुनिया में भारत, चीन के बाद दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत (India) का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान है। भारत के राजस्थान (Rajasthan) राज्य का पश्चिमी मरुस्थल या बिख्यात थार रेगिस्तान के नाम प्रसिद्ध है। यह दुनिया का सबसे ज्यादा आबादीबाला रेगिस्तान है।

पश्चिमी मरुस्थल लहरदार रेतीले पहाड़ों का विस्तार है जो भारत के विशाल मरुस्थल भी कहलाता है। कुछ भाग भारत के राजस्थान में और कुछ पाकिस्तान में स्थित है। पश्चिमी मरुस्थल क्षेत्र के पश्चिम में सिंधु द्वारा सिंचित क्षेत्र है, इसके दक्षिण-पूर्व में अरावली का विस्तार है और दक्षिण में कच्छ का रेगिस्तान है, तो पूर्वोत्तर में पंजाब का भूभाग है, यह मरुस्थल मॉनसून में अभाव के परिणामस्वरूप निर्मित हुआ है, जिसके कारण इस इलाक़े में पर्याप्त वर्षा नहीं होती।

मरुस्थल किसे कहते है – Marusthal Kise kahte Hai

मरुस्थल का शाब्दिक अर्थ — मृत भूभाग अर्थात ऐसा प्रदेश जहाँ मानब, जीबजंतु एबं बनस्पति को जीबित रहने के पर्याबरण से काफ़ी संघर्ष करना पड़ता है। दूसरे शब्दो में कहा जय तो ऐसा भूआकृतिक प्रदेश जहाँ बहुत कम बर्षा (15 सें. मी. सें कम बर्षिक बर्षा) होती हो, तापमान प्रतिकूल (अत्यधिक या अत्यधिक कम) हो, मृदा में नमी मात्रा कम पाई जाती हो, मृदा में जैबिक तत्यो का अभाब पाई जाती हो, ऐसे प्रदेश या भूभाग को मारुस्थलीय प्रदेश कहा जाता है। यहाँ बस्पीकरण अधिक तथा बर्षा कम होती है। जिसके करण हमेशा जल का अभाब पाया जाता है।

पश्चिमी मरुस्थल का क्षेत्रफल कितना है – Paschimi Marusthal Ka Kshetrafal Kitna Hai

पश्चिमी मरुस्थल का क्षेत्रफल कितना है

राजस्थान का अरावली श्रेणीयों के पश्चिम का क्षेत्र शुष्क एवं अर्द्धशुष्क मरूस्थली प्रदेश है। यह एक विशिष्ठ भौगोलिक प्रदेश है। जिसे भारत का विशाल मरूस्थल अथवा थार का मरूस्थल के नाम से जाना जाता है। थार का मरूस्थल विश्व का सर्वाधिक आबाद तथा वन वनस्पति वाला मरूस्थल है। ईश्वरी सिंह ने थार के मरूस्थल को रूक्ष क्षेत्र कहा है। राज्य के कुल क्षेत्रफल का 61 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में राज्य की 40 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। प्राचीन काल में इस क्षेत्र से होकर सरस्वती नदी बहती थी। सरस्वती नदी के प्रवाह क्षेत्र के जैसलमेर जिले के चांदन गांव में चांदन नलकूप की स्थापना कि गई है। जिसे थार का घड़ा कहा जाता है।

पश्चिमी मरुस्थल जो थार मरुस्थल (Thar Desert) कहा जाता है, जिसे महान भारतीय मरुस्थल (Great Indian Desert) भी कहलाता है। भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तरी भाग में विस्तारित एक शुष्क व मरुस्थल क्षेत्र है। यह भारत और पाकिस्तान में 200,000 किमी2 (77,000 वर्ग मील) पर विस्तारित है। यह विश्व का 17वाँ सबसे बड़ा मरुस्थल है और 9वाँ सबसे बड़ा गरम उपोष्णकटिबन्धीय मरुस्थल है। थार का 85% भाग भारत और 15% भाग पाकिस्तान में है।

पश्चिमी मरुस्थल का 85% भाग राजस्थान राज्य में आता है और राजस्थान के क्षेत्रफल का 61.11% भाग मरुस्थल से घिरा हुआ है। जिनमे राजस्थान के चुरू,हनुमानगढ़,बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर,बाड़मेर , हालांकि यह मरुस्थल गुजरात, पंजाब, हरियाणा और पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में भी फैला हुआ है। पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में थार चोलिस्तान में विस्तारित है। थार का पश्चिमी भाग मरुस्थली कहलाता है और बहुत शुष्क है, जबकि पूर्वी भाग में कभी-कभी हलकी वर्षा हो जाती है और कम रेत के टीले पाए जाते हैं। अरावली पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर थार मरुस्थल स्थित है। यह मरुस्थल बालू के टिब्बों से ढँका हुआ एक तरंगित मैदान है।

एक नजर पछिमी मरुस्थल के बारे में —

• राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 61.11 % भाग उ.प. रेगिस्तानी भाग है। इनमे से 58% भाग पूर्णत: मरुस्थल है|
• क्षेत्र – जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, नागौर,जालोर, चुरू, सीकर, झुंझुनू तथा पाली का पश्चिमी भाग।
• जनसंख्या – राज्य की लगभग 40%।
• वर्षा – 20 सेमी से 50 सेमी।
• तापमान – गर्मियों में उच्चतम 490C तथा सर्दियों में -30C।
• जलवायु – शुष्क व अत्यधिक विषम।
• मिटटी – रेतीली बलुई।
• अरावली का वृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण दक्षिण पश्चिमी मानसून व बंगाल की खाड़ी का मानसून सामान्यत: यहाँ वर्षा नहीं करता है। अत: वर्षा का वार्षिक ओसत 20-50 सेमी रहता है।
• राष्ट्रिय कृषि आयोग ने अरावली श्रृखला के पश्चिम व उत्तर पश्चीम में राज्य के 12 जिलों को रेगिस्तानी घोषित किया है- जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, नागौर, जालोर, चुरू, सीकर, झुंझुनू, पाली का पश्चिमी भाग।
• भारत का सबसे बड़ा मरुस्थल थार का मरुस्थल है।
• रेतीले शुष्क मैदान तथा पूर्व में 50 सेमी व पश्चिम में 25 सेमी वार्षिक वर्षा द्वारा सीमांकित किया गया क्षेत्र पश्चिमी रेतीला मैदान भौतिक विभाग के उप विभाग है।

पश्चिमी मरुस्थल के प्रकार या बनावट कैसे है

पश्चिमी मरुस्थल में थार की चट्टानों का निर्माण जुरासिक काल तथा इयोसीन काल में हुआ था। बनावट के आधार पर पश्चिमी मरुस्थल में थार के मरुस्थल को 3 भागों में बाटा जा सकता है। जैसे-

1. हम्मादा मरुस्थल या हम्मदा मरुस्थल
2. इर्ग
3. रेग

1. हम्मादा मरुस्थल या हम्मदा मरुस्थल

पश्चिमी मरुस्थल के चट्टानी मरुस्थल को हम्मादा मरुस्थल कहते है। पश्चिमी मरुस्थल में हम्मादा मरुस्थल के लिए राजस्थान के पोकरण (जैसलमेर) प्रसिद्ध है। राजस्थान में सर्वाधिक हम्मादा मरुस्थल जोधपुर में पाया जाता है।

2. इर्ग

पश्चिमी मरुस्थल के सम्पूर्ण मरुस्थल को इर्ग कहते है। इर्ग के लिए राजस्थान के जैसलमेर तथा बाड़मेर जिले प्रसिद्ध है। राजस्थान में सर्वाधिक इर्ग मरुस्थल जोधपुर में पाया जाता है।

3. रेग

पश्चिमी मरुस्थल के मिश्रित मरुस्थल को रेग कहते है। अर्थात् राजस्थान में इर्ग तथा हम्मादा मरुस्थल के मिश्रित रूप को रेग कहते है। रेग मरुस्थल के लिए राजस्थान के बीकानेर जिले का कोलायत क्षेत्र प्रसिद्ध है। राजस्थान में सर्वाधिक रेग मरुस्थल जोधपुर में पाया जाता है।

पश्चिमी मरुस्थल का आकृति कैसे है

आर्कियन (प्रीकैम्ब्रियन) गनीस (चट्टानें जो 2.5 और 4 अरब साल पहले विकसित हुई हैं, प्रोटेरोज़ोइक (बाद में प्रीकैम्ब्रियन) तलछटी चट्टानें (2.5 और 541 मिलियन वर्ष पहले के बीच बनी थीं, और अधिक वर्तमान जलोढ़ सभी थार के रेगिस्तानी रेत से ढके हुए हैं। ऐओलियन) पिछले 1.8 मिलियन वर्षों के दौरान सतह पर रेत (हवा से जमा) एकत्र हुई है।

रेगिस्तान में लहरदार स्थलाकृति है, जिसमें निचले और ऊंचे टीले मैदानों से अलग होते हैं जो रेतीले और नीचे की ओर बंजर पहाड़ियाँ (भाकर) हैं, जो अपने आसपास के मैदानों से अचानक उठती हैं। टीले लगातार बदलते रहते हैं और विभिन्न रूप और आकार लेते हैं। दूसरी ओर, पुराने टीले अर्ध-स्थिर या स्थिर होते हैं, और उनमें से कई आसपास के इलाके के बाहर 150 मीटर से अधिक तक बढ़ते हैं। पूरे क्षेत्र में कई प्लाया (नमकीन झील के बिस्तर) हैं, जिन्हें कभी-कभी ढांड कहा जाता है।

पश्चिमी मरुस्थल का भूमिभाग कैसे है

पश्चिमी मरुस्थलीय मैदान दो भागों में विभक्त है

A. शुष्क मैदान

B. अर्द्ध शुष्क मैदान

A. शुष्क प्रदेश

यह क्षेत्र 10 से 25 सेमी सम वर्षा रेखा का क्षेत्र है। इसके अंतर्गत बीकानेर, श्रीगंगानगर का दक्षिणी भाग ,जैसलमेर बाड़मेर उत्तर पश्चिम जालौर ,पश्चिमी जोधपुर, पश्चिमी नागौर ,दक्षिण पश्चिम चूरू शामिल किया जाता है। यह क्षेत्र थार मरुस्थल के नाम से भी जाना जाता है। इसका विस्तार 25 डिग्री उत्तरी अक्षांश 30 डिग्री उत्तरी अक्षांश व 69°30 पूर्वी से 70°45 पूर्वी देशांतर तक दिखाई देता है।

शुष्क प्रदेश का उप विभाजन 2 रूपों में किया जाता है

1. बालुका स्तूप मुक्त

2. बालुका स्तूप युक्त

1. बालुका स्तूप मुक्त

यह क्षेत्र रेत के टीलों से मुक्त भाग है। जो नदी द्वारा लाए गए बालू का कणों से युक्त चट्टानों के रूप में दिखाई देता है। जिससे स्थानीय भाषा में लाठी सीरीज का जाता है।यह क्षेत्र मुख्यता जोधपुर के फलौदी से लेकर जैसलमेर के पोकरण तक लगभग 64 किलोमीटर में विस्तारित है।

2. बालुका स्तूप युक्त

समवर्षा रेखा के मध्य का ही भाग है इसके अंतर्गत मरूभूमि के विभिन्न रूप दिखाई देते हैं।

a. इर्ग

संपूर्ण रेतीला मरुस्थलीय भू भाग जो बालुका स्तूप चट्टानी सतह एंव वनस्पति युक्त दिखाई देता है इसे कहते हैं।

b. रेग

मिश्रित मरुस्थल जिसमें बालुका स्तूप एवं चट्टानी सतह उपस्थित दिखाई दे,रेग कहलाता हैं।

c. हमादा

चट्टानी पत्थरीला मरुस्थल भू-भाग

d. रेह/कल्लर

मरुस्थलीय भागों में सतह पर विकसित लवणीय भाग अर्थात नमक की परत से युक्त सतह रेह कल्लर कहलाती है

e. प्लाया

शुष्क व अर्द्ध शुष्क भागों में अभिकेंद्रीय बल से प्रेरित होकर विकसित होने वाली झीलें प्लाया झीलें कहलाती है प्राय:-पश्चिम क्षेत्र में लवणीय रूप दिखाई देती है।

f. बालसन

शुष्क व अर्द्ध शुष्क भागों में जल से विकसित हुआ बेसिन बालसन कहलाता हैं।

g. बजादा

शुष्क व अर्द्ध शुष्क भागों में उच्च वर्ती भागों के तलहटी (गिरिपाद) क्षेत्र में एकत्रित होने वाला कंकड़ पत्थर युक्त क्षेत्र बजादा कहलाता हैं।

h. रण

राज्य के पश्चिमी भागों में वर्षा जल से विकसित दलदली भूमि जैसे:-कनोड, बरमरमर, पोकरण इत्यादि। कहीं-कहीं इन टीलों के बीच में निम्र भूमि मिलती है जिससे तल्ली कहते हैं वर्षा का जल भर जाने से ये तल्लिया अस्थायी झीलें बन जाती है जिन्हें ढाढ या रण कहते हैं।

2. बालुका स्तूप

पश्चिमी मरुस्थलीय भागों में मरूभूमि की वास्तविक पहचाना बालुका स्तूपो से होती है जो अलग-अलग स्वरूपों में दिखाई देते हैं मुख्य बालूका स्तूप निम्न प्रकार से हैं।

a. अनुदैधर्य पवनानुवर्ती

यह पवन की दिशा के अनुरूप विकसित होते हैं यह 100-200 मीटर लंबे एवं 10-20 मीटर ऊंचे होते हैं यह स्थायी प्रवृत्ति के होते हैं तथा इनके कण बड़े दिखाई देते हैं। क्षेत्र-बाड़मेर, जैसलमेर (रामगढ़ ),दक्षिणी पश्चिमी जोधपुर

b. अनुप्रस्थ अपवनानुवर्ती

यह पवन की दिशा के समकोण में विकसित होते हैं विशेषकर जब पवन दीर्घकाल तक एक ही दिशा में गमन करती है आकार में पंजाकार दिखाई देती है। क्षेत्र-हनुमानगढ़ (रावतसर) ,श्री गंगानगर (सूरतगढ़ ),बीकानेर , जैसलमेर का उत्तरी भाग ,जोधपुर उत्तर पश्चिमी भाग

c. तारा आकृति

जब बालुका स्तूप से कई शाखाएं विकसित हो जाए। क्षेत्र-जैसलमेर (सोनगढ़ ,पोकरण), श्री गंगानगर (सूरतगढ़)

d. बरखान अर्द्धचंद्राकार

यह बेहद गतिशील बालुका स्तूप है इसके किनारे अंदर की तरफ मुडे होते हैं क्षेत्र-श्री गंगानगर (सूरतगढ़ ),चूरू(भालेरी ), बीकानेर (लूणकरणसर ,करणी माता), जोधपुर (ओसियां )आदि।

B. अर्द्ध शुष्क मैदान

राजस्थान बाँगर को भी 4 लघु प्रदेशो में बाटा गया है —

a. घग्घर क्षेत्र – हनुमानगढ़, गंगानगर का क्षेत्र। घग्घर नदी के पाट को नाली कहते है।

b. आन्तरिक जल प्रवाह – शेखावटी क्षेत्र। शेखावटी क्षेत्र में कुओ को स्थानीय भाषा में जोहड़ कहा जाता है।

c. नागौरी उच्च प्रदेश — राजस्थान के दक्षिण पूर्व में अति आर्द्र लूनी बेसिन तथा उत्तर पूर्व में शेखावटी शुष्क अन्तवर्ती मैदान के बीच का प्रदेश नागौरी उच्च भूमि नाम से जाना जाता है।

d. गोंडवाड़ – या लूनी बेसिन प्रदेश। सांभर, डीडवाना, पचपदरा, इत्यादि खारे पानी की झीले टेथिस सागर का अवशेष है। सर्वाधिक खारे पानी की झीले नागौरी उच्च प्रदेश के अंतर्गत आती है।

• पिवणा : राजस्थान के पश्चिमी भाग में पाए जाने वाला सर्वाधिक विषेला सर्प है।
• चान्दन नलकूप (जैसलमेर) : थार का मीठे पानी का घड़ा।

पश्चिमी मरुस्थल के जलवायु कैसे है

भारतीय सीमा वाले थार रेगिस्तान में वर्षा की औसत वार्षिक मात्रा 345 मि.मी. तक होती है। यहां वर्षा की मात्रा पश्चिमी भाग में 100 मि.मी. तक तो पूर्वी सीमा के निकट यह 400 मि.मी. तक हो जाती है। मई तथा जून के महीनों में यहां रेतीली आंधी आती है जिसकी गति 150 कि.मी प्रति घंटा तक होती है। गर्मियों में यहां की रेत उबलती है। इस मरुभूमि में 52 डिग्री सेल्शियस तक तापमान रिकार्ड किया गया है। जबकि सर्दियों में तापमान शून्य से नीचे चला जाता है। जिसका मुख्य कारण हैं यहाँ की बालू रेत जो जल्दी गर्म और जल्दी ठंडी हो जाती है। गर्मियों में मरुस्थल की तेज गर्म हवाएं चलती हैं जिन्हें “लू” कहते हैं तथा रेत के टीलों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है और टीलों को नई आकृतियां प्रदान करती हैं और रेत के बड़े-बड़े टीलों को दूसरे स्थानों पर धकेल देती है जिससे यहां मरुस्थलीकरण की समस्या बढ़ती जाती है। इस रेगिस्तान का कुछ क्षेत्र सतलज नदी द्वारा सिंचित होता है। थार रेगिस्तान में रेत के विशाल स्थल के बीच चट्टानी पहाडि़यां तथा बजरी के समतल क्षेत्र भी पाये जाते हैं।

पश्चिमी मरुस्थल का आबादी कितनी है

थार मरुस्थल दुनिया में सबसे व्यापक रूप से आबादी वाला मरुस्थल है। जिसकी जनसंख्या घनत्व 83 व्यक्ति प्रति किमी 2 है। भारत में, निवासियों में हिंदू, जैन, सिख और मुस्लिम शामिल हैं। पाकिस्तान में, निवासियों में मुस्लिम और हिंदू दोनों शामिल हैं।

राजस्थान की कुल आबादी का लगभग 40% थार रेगिस्तान में रहते हैं। लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। परंपरा से समृद्ध एक रंगीन संस्कृति इस रेगिस्तान में विद्यमान है। लोगों को लोक संगीत और लोक कविता के लिए एक बड़ा जुनून है।

जोधपुर इस क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर स्क्रब वन क्षेत्र में स्थित है। बीकानेर और जैसलमेर रेगिस्तान में स्थित हैं। एक बड़ी सिंचाई और बिजली परियोजना ने कृषि के लिए उत्तरी और पश्चिमी रेगिस्तान के क्षेत्रों को पुनर्जीवित किया है। छोटी आबादी ज्यादातर देहाती है।

पश्चिमी मरुस्थल भारत के कौन कौन से राज्यों में फैला है

भारत के राजस्थान के 60 प्रतिशत भाग में थार मरुस्थल है जबकि बाकी शेष रेगिस्थान गुजरात, पंजाब और हरियाणा में स्थित है। इसके अलावा गुजरात में कच्छ क्षेत्र में भी रेगिस्थान देखने को मिल जाता है। कच्छ रेगिस्थान दुनिया का सबसे अलग रेगिस्थान कहलाता है क्योंकि यह पूरी तरह से सफेद है। यानी इस रेगिस्तान में रेत की बजाय नमक है। इसे The Great Ran of Kacch कहते है।

पश्चिमी मरुस्थल के जीवजंतु कैसे है

पश्चिमी मरुस्थल में कुछ वन्यजीव प्रजातियां जैसे कि ब्लैकबक (एंटिलोप सर्विकाप्रा), चिंकारा (गजेला बेनेट्टी), और भारतीय जंगली गधा (इक्वस हेमियोनस खुर) बड़ी संख्या में पाए जा सकते हैं। पश्चिमी मरुस्थल रेगिस्तान में पाए जाने वाले अन्य जानवरों में एक लाल लोमड़ी उप-प्रजाति (वल्प्स वल्प्स पुसिला) और कैरकल, साथ ही साथ विभिन्न प्रकार के सरीसृप शामिल हैं।

प्रवासी और निवासी रेगिस्तानी पक्षियों की 141 प्रजातियों में से हैरियर, फाल्कन्स, बज़र्ड्स , केस्ट्रेल, गिद्ध, शॉर्ट-टोड ईगल्स (सर्केटस गैलिकस), टैनी ईगल्स (अक्विला रैपैक्स), बड़े धब्बेदार ईगल (अक्विला क्लैंगा), और लैगर फाल्कन हैं। क्षेत्र घर (फाल्को बाजीगर)। पश्चिमी मरुस्थल क्षेत्र में भारतीय मोर स्थायी प्रजनक है। गांवों और देबलीना में इसे खेजड़ी या पीपल के पेड़ों पर बैठे देखा जा सकता है।

पश्चिमी मरुस्थल अर्थब्यबस्था कैसे है

पश्चिमी मरुस्थल की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि कार्यों एव पशुपालन पर ही निर्भर करती है, तथा कृषि के उपरान्त पशुपालन को ही जीविका का प्रमुख साधन माना जा सकता है । पश्चिमी मरुस्थल में प्राय: सूखे की समस्या रहती है। इसी वजह से पशुओं को पर्याप्त मात्रा में चारा उपलब्ध नहीं हो पाता। राज्य के मरुस्थलीय और पर्वतीय क्षेत्रों में भौगोलिक और प्राकृतिक परिस्थितियों का सामना करने के लिये एकमात्र विकल्प पशुपालन व्यवसाय ही रह जाता है ।

पश्चिमी मरुस्थल में देश के पशुधन का 7 प्रतिशत था, जिसमें भेड़ों का 25 प्रतिशत अंश पाया जाता है। पशुसम्पदा की दृष्टि से राजस्थान एक समृद्ध राज्य है। यहाँ भारत के कुल पशुधन का लगभग 11.5 प्रतिशत मौजूद है। क्षेत्रफल की दृष्टि से पशुओं का औसत घनत्व 120 पशु प्रति वर्ग किलोमीटर है जो सम्पूर्ण भारत के औसत घनत्व (112 पशु प्रति वर्ग किलोमीटर) से अधिक है। पशुओं की बढ़ती हुई संख्या अकाल और सूखे से पीड़ित पश्चिमी मरुस्थल के लिये वरदान सिद्ध हो रही है।

आज पश्चिमी मरुस्थल की शुद्ध घरेलू उत्पत्ति का लगभग 15 प्रतिशत भाग पशु सम्पदा से ही प्राप्त हो रहा है । राजस्थान में देश के कुल दुग्ध उत्पादन का अंश लगभग 10 प्रतिशत होता है।राज्य के पशुओं द्वारा भार-वहन शक्ति 35 प्रतिशत है । भेड़ के माँस में राजस्थान का भारत में अंश 30 प्रतिशत है । ऊन में राजस्थान का भारत में अंश 40% है। राज्य में भेंड़ों की संख्या समस्त भारत की संख्या का लगभग 25 प्रतिशत है ।

पश्चिमी मरुस्थल का क्षेत्रफल में वृद्धि दर

थार मरुस्थल हर साल आधा किलोमीटर की रफ्तार से उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रहा है। आने वाले वक़्त में यह भारत के भू-उपयोग का नक्शा ही बदल देगा। ‘इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन’ (इसरो) की ताजा रिसर्च में यह खुलासा हुआ है कि, कल तक राजस्थान की पहचान रहे थार मरुस्थल ने अब हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश तक अपने पाँव पसार लिए हैं। रेतीली मिट्टी के फैलाव के अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी मृदा का ह्रास इस हद तक बढ़ गया है कि, कृषि और वानिकी पर आजीविका चला रहे साठ प्रतिशत लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा होने की आशंका पैदा हो गई है। इसरो ने पहली बार देश की भू-संपदा के ह्रास का नक्शा तैयार किया है। इसके लिए भारतीय उपग्रह आई.आर.एस.पी.सी.-1 रिसोर्ससेट पर स्थापित ‘एडवांस्ड वाइड फ़ील्ड सेंसर’ से समय-समय पर ली गई उपग्रह तस्वीर का गहन विश्लेषण किया गया। विश्लेषण के आधार पर तैयार नक्शे से संकेत मिलते हैं कि, पूवी घाट, पश्चिमी घाट तथा पश्चिमी हिमालय सतह से नीचे जा रहे हैं।

FAQs

पश्चिमी मरुस्थल का कितने प्रतिशत भाग भारत में स्थित है?
पश्चिमी मरुस्थल का 75 प्रतिशत भाग भारत में स्थित है।

आकार की दृष्टि से पश्चिमी मरुस्थल का दुनिया में कौन सा स्थान है?
आकार की दृष्टि से पश्चिमी मरुस्थल का दुनिया में 18 वां पर स्थान है।

भारत के कुल क्षेत्रफल के कितने प्रतिशत भाग पर पश्चिमी मरुस्थल मौजूद है?
भारत के कुल क्षेत्रफल के 10 प्रतिशत भाग पर पश्चिमी मरुस्थल मौजूद है।

पश्चिमी मरुस्थल भारत के कौन-कौन से राज्यों में फैला है?
पश्चिमी मरुस्थल भारत के राजस्थान, हरियाणा, पंजाब व गुजरात राज्य में फैला है।

पश्चिमी मरुस्थल पाकिस्तान के कौन से प्रांत में फैला है?
सिंध व पंजाब में।

पश्चिमी मरुस्थल कुल कितने क्षेत्रफल में फैला हुआ है?
2 लाख वर्ग किलो मीटर में।

विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला मरुस्थल कौन सा है?
पश्चिमी मरुस्थल में (पश्चिमी का जनसँख्या घनत्व 83 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर है)।

हमारा अंतिम शब्द

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