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भारत में OBC की जनसंख्या कितनी है – Bharat Me OBC ki Jansankhya Kitni Hai

By Proud Skill

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भारत में OBC की जनसंख्या कितनी है – Bharat Me OBC ki Jansankhya Kitni Hai : नमस्कार दोस्तों, आपको स्वागत है हमारे इस Blog पर, जहापर आज हम आपको बताएँगे “भारत में OBC की जनसंख्या कितनी है – Bharat Me OBC ki Jansankhya Kitni Hai”। भारत दुनिया का सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र का देश है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत दुनिया का सातवा सबसे बड़ा देश है। अगर जनसंख्या की बात करे तो दुनिया में भारत चीन के बाद दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है।

भारत एक लोकतांत्रिक बहुसंख्यक देश है, जिसमे सभी धर्मो के लोग रहते है। इन्ही धर्मो में कई तरह की जाति उपजाति के लोग भी रहते है, जिन्हे अलग – अलग वर्गो में बांटा गया है। इन्ही में से एक वर्ग OBC का होता है। हमारे देश में जाति एक बहुत ही बड़ा चर्चा का विषय है। यहा किसी का नाम पूछने से पहले जाति जरुर पूछी जाती है। जाति के आधार पर राजनीती भी भारत जैसे लोकत्रांतिक देश में बहुत खेली जाती है। चुनाव पार्टियों का मुद्दा विकास और उन्नति से हटकर हमारे देश में जाति हो गया है। जाति के नाम पर वोट गिने जाते है। लेकिन आपको पता है की — भारत में OBC की जनसंख्या कितनी है – Bharat Me OBC ki Jansankhya Kitni Hai.

OBC किसे कहते है – Who are OBC in Hindi

हमारे देश में OBC एक बहुत ही लोकप्रिय शब्द हैं। इसे अन्य पिछड़े बर्ग (Other Backword Class) भी कहा जाता हैं। बहुत सी जातियाँ OBC में आती है।OBC की जडे भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 (4l और 340 में हैं जहां इसे पिछड़ा वर्ग के नाम से संकलित किया गया हैं। OBC की जनसंख्या 42% हैं, जबकी संरक्षण 27% लोगो को ही दिया गया हैं। 1980 मे मंडल आयोग की रिपोर्ट में OBC का देश की जनसंख्या में 52% हिस्सा पाया गया व राष्ट्रीय नमुना सर्वेक्षण में 2006 तक ये आंकडा घट कर 41% तक आ गया।

भारत के संविधान में OBC को सामाजिक व शैक्षिक क्षेत्र मे पिछडे वर्ग के‌ रुप में वर्णित किया गया है। OBC को सार्वजनिक क्षेत्र के रोजगार में शिक्षा में 27% आरक्षण दिया जाता है।

एक सर्वेक्षण से प्रति किसान परिवार की औसत मासिक आय का जो डेटा सामने आया है उसके मुताबिक कृषि वर्ष 2018-19 के दौरान एक किसान परिवार की औसत मासिक आय 10,218 रुपये थी, जबकि ओबीसी कृषि परिवारों (9,977 रुपये), अनुसूचित जाति परिवारों (8,142 रुपये), एसटी परिवारों (8,979 रुपये) के हिसाब से कम थी। हालांकि, ‘अन्य सामाजिक समूहों’ के कृषि परिवारों ने औसत मासिक आय 12,806 रुपये दर्ज की। राज्यों के हिसाब से ओबीसी श्रेणी में प्रति कृषि परिवार की औसत मासिक आय कृषि वर्ष 2018-19 के दौरान 5,009 रुपये और 22,384 रुपये के बीच थी।

भारत में OBC की जनसंख्या कितनी है – Bharat Me OBC ki Jansankhya Kitni Hai

भारत में OBC की जनसंख्या कितनी है

ग्रामीण भारत में कृषि परिवारों और उनकी स्थिति के आंकलन को लेकर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा किए गए सर्वेक्षण के जरिए साल 2021 के सितम्बर महीने की शुरुआत में जारी किए आंकड़ों से पता चलता है कि अनुमानित 17.24 करोड़ ग्रामीण परिवारों में 44.4 फीसद ओबीसी, 21.6% अनुसूचित जाति (एससी), 12.3% अनुसूचित जनजाति (एसटी) और 21.7 फीसदी अन्य समूहों से हैं। वहीं कुल ग्रामीण परिवारों में से 9.3 करोड़ या 54% कृषि परिवार हैं।

ग्रामीण क्षेत्र में ओबीसी परिवारों का उच्चतम अनुपात तमिलनाडु (67.7%) में है और सबसे कम नागालैंड (0.2%) में है। तमिलनाडु के अलावा बाकी के छह राज्यों में स्थिति कुछ इस प्रकार है- बिहार (58.1%), तेलंगाना (57.4%), उत्तर प्रदेश (56.3%), केरल (55.2%), कर्नाटक (51.6%), छत्तीसगढ़ (51.4%)। ओबीसी की इस आबादी के साथ इन राज्यों राजनीतिक भागीदारी भी काफी दमदार है। क्योंकि 543 सदस्यीय लोकसभा में यहां से 235 सदस्य चुने जाते हैं।

इसके अलावा, 44.4% के राष्ट्रीय आंकड़ें की तुलना में चार राज्यों – राजस्थान (46.8%), आंध्र प्रदेश (45.8%), गुजरात (45.4%) और सिक्किम (45%) में ग्रामीण ओबीसी परिवारों की हिस्सेदारी अधिक है। कुल मिलाकर, राष्ट्रीय औसत की तुलना में अन्य 17 राज्यों – मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, हरियाणा, असम, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड ग्रामीण ओबीसी परिवारों की संख्या कम है।

सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि अनुमानित 9.3 करोड़ कृषि परिवारों में से 45.8% ओबीसी हैं। इसके अलावा 15.9% अनुसूचित जाति, 14.2% अनुसूचित जनजाति और 24.1% अन्य समूहों से हैं।

OBC का फूल फॉर्म क्या है – Full Form of OBC in Hindi

OBC को हिंदी भाषा में “अन्य पिछड़ा वर्ग” तथा अंग्रेजी भाषा में इसे OBC (Other Backward Classes) कहते है, इसके अंतर्गत बहुत सारी जातियां आती है।

OBC में कोनसी लोगोंको शामिल किया गया है

जिस वर्ग के लोग आर्थिक, शैक्षणिक व सामाजिक रूप से कमजोर थे उन सभी लोगो को OBC में सम्मिलित किया गया था। यह लोग पारम्परिक रूप से गरीब, किसान व अनपढ़ लोग थे, जो की खेती व चारवाह आदि में व्यस्त रहते थे। हालांकि इस वर्ग के लोग खुद को Scheduled Caste से ऊपर मानते हैं, व इस कारण से इन दोनों वर्गों में कई बार कहासुनी भी होती रहती है।

इसको 1979 में बनाये गए मंडल आयोग की सिफारिस पर शामिल किया गया था इस वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में आने वाले समुदाय को शामिल किया गया था जिनको सरकार की तरफ से विशेष लाभ लेने के लिए की व्यवस्था कर दी गयी इस वर्ग में अधिकांश किसान, चारवाह, मजदुर, व गरीब परिवार के लोग आते है।

OBC वर्ग नौकरी में आरक्षण का लाभ 1990 में VP Singh की सरकार की सिफारिशों पर मंडल आयोग द्वारा दिया गया था हाल में इस वर्ग को देशभर में सरकारी नौकरी व शिक्षण संस्थानों एवं अन्य कई सरकार द्वारा निर्देशित उपक्रमों में 27% तक का आरक्षण प्रदान किया जाता है।

OBC में कौनसी जातियां है

OBC में कई तरह की अलग-अलग जातियां आती है, जिस वजह से यह एक बहुत बड़ा वर्ग है | प्रत्येक राज्य के नियमानुसार अलग-अलग जातियों को इस वर्ग में शामिल किया गया है। इस वर्ग में तक़रीबन सैकड़ो जातियां आती है, जिन्हे अलग-अलग तरह की सहायता प्रदान की जाती है। जैसे —

• कलबी
• भटिआरा
• राइ-सिख
• मेव
• सिंधी मुसलमान
• देशवाली
• सिकलीगर
• सिरकीवाल
• स्वर्णकार, सुनार, सोनी
• तमोली (तम्बोली)
• तेली
• ठठेरा, कंसारा, भरावा
• सक्का-भिश्ती, सक़्क़ा-भिश्ती
• मोची
• रंगरेज़, नीलगर
• चूनगर
• जाट (भरतपुर एंड धौलपुर के जिलों को छोड़कर)
• बरी
• फ़क़ीर/ फकीर
• कसाई
• सिलावट
• लखेरा (लखारा), मनिहार
• लोधी (लोढ़ा, लोध)
• लोहार, पांचाल
• महा-ब्राह्मण (आचारै)
• माली सैनी, बागवान
• मेर (मेहरात)
• मिरासी, धड़ी
• मोगीअ (मोग्या)
• नाइ, साइन, बैद नाइ
• न्यारिया
• पटवा (फदल)
• राइका, रेबारी(देबासी)
• रावत
• साद, स्वामी
• सतिया-सिंधी
• गाड़िया-लोहार, गादोला
• घांची
• गिरी गोसाईं (गुसाईं)
• गुज्जर, गुर्जर
• हेला
• जनवा, सिरवी.
• जोगी, नाथ
• जुलाहा (हिन्दू & मुस्लिम)
• कच्ची, कच्ची कुशवाहा
• कलाल (टक)
• कांबी
• कंडेरा, पिंजरा, मंसूरी
• खारोल
• किरार (किराड़)
• (ए) (बी) (ए) कुम्हार (प्रजापति) (बी) कुमावत
• अहीर (यादव)
• बड़वा, भाट
• जांगिड़, खाती
• बगारिआ
• बंजारा, बलादिआ, लबाना
• भारभुजा
• चरण
• छिप्पा (छिपी), भावसार
• डकौत, देशांतरी, रंगासामी (अडभोपा)
• दमामी, नगारची
• दरोगा, दरोगा-राजोट, रवाना-राजपूत, हज़ूरी, वज़ीर
• दर्ज़ी
• धाकड़
• धीवर,माली, क़ीर, मल्लाह, महरा
• गडरिए (गडरी),
• अन्य

OBC की इतिहास – History of OBC in Hindi

1870 के दशक में मद्रास प्रेसीडेंसी में ओबीसी शब्द के प्रयोग का सन्दर्भ मिलता है। ब्रिटिश प्रशासन ने सकारात्मक कार्रवाई हेतु निम्न जाति के समूहों की पहचान करने के लिए शूद्र बर्ग और ‘अछूत’ जातियों को “पिछड़े वर्गों” के लेबल के तहत जोड़ा। 1935 के भारत सरकार अधिनियम में अछूतों को अनुसूचित जाति के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया। स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार ने इस वर्गीकरण का उपयोग करना जारी रखा (जैफ्रेलॉट 2003)। श्री बी.आर. अम्बेडकर जी के प्रयासों के कारण सरकार ने जाति उत्पीड़न को बड़े पैमाने पर कम करने के लिए ठोस उपाय किये। 1950 में अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया और सरकार ने केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर एससी और एसटी के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व अनिवार्य कर दिया। संविधान ने ओबीसी के लिए प्रावधान करने का भी संकल्प लिया था (जैफ्रेलॉट 2003)। काका कालेलकर और बी.पी. मंडल की अध्यक्षता में क्रमशः 1953 और 1978 में पिछड़ी जाति हेतु दो केन्द्रीय स्तर के आयोग गठित किये गए। फिर भी, “OBC” 80 के दशक के अंत तक एक अमूर्त प्रशासनिक श्रेणी बना रहा।

मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह द्वारा 1989 में ओबीसी के लिए आरक्षण की घोषणा किये जाने के बाद पूरे उत्तर भारत में उच्च जाति के छात्रों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया गया। कुछ विद्वानों ने तर्क दिया कि इस अवधि के दौरान एक मजबूत चुनावी ताकत के रूप में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का उदय, उच्च जाति के समर्थन को आकर्षित करके निचली जातियों (कॉर्ब्रिज और हैरिस 2000) की उन्नति के खिलाफ किये गए “कुलीन विद्रोह” को दर्शाता है। इसके कारण अन्यथा विभाजित शूद्रों की प्रति-लामबंदी ने ओबीसी को राजनीतिक रूप से एक प्रमुख समूह के रूप में एकत्रित किया।, 90 के दशक में ओबीसी के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में काफी वृद्धि हुई, जिसे योगेंद्र यादव ने भारत का “दूसरा लोकतांत्रिक उत्थान” (यादव 2000) कहा है। चित्र 1 जैफ्रेलॉट और कुमार (2009) के शोध में एकत्र किए गए मूल आंकड़ों के आधार पर राज्य विधानसभाओं में विभिन्न जाति समूहों के प्रतिनिधित्व को दर्शाता है। ओबीसी को लामबंद करने वाली राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और समाजवादी पार्टी (सपा) जैसी पार्टियां राजनीति के इस “मंडलीकरण” (यादव 2000) के साथ महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ीं- और इसी कारण से भाजपा को नई जाति-आधारित जनगणना का डर हो सकता है।

90 के दशक की शुरुआत तक, भारत के अधिकांश राज्यों के मुख्यमंत्री गैर-ब्राह्मण थे, जो ज्यादातर ओबीसी समूहों (जैफ्रेलॉट और कुमार 2009) से आते थे। इन नेताओं ने अपने-अपने राज्यों में ओबीसी आरक्षण पर जोर दिया। राजनीतिक प्रतिनिधित्व के रुझानों के विपरीत, ओबीसी आरक्षण में सबसे तेज वृद्धि 1993 के बाद मंडल आयोग की रिपोर्ट (चित्र 2) के कार्यान्वयन के बाद हुई। स्वतंत्रता के ठीक बाद ओबीसी कोटा दक्षिण भारत के केवल चार राज्यों- तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक तक सीमित था। इसका कारण यह है कि दक्षिण भारत में निम्न जाति के सामाजिक आंदोलनों का बहुत लंबा इतिहास रहा है।, उदाहरण के लिए, तमिलनाडु राज्य में जस्टिस पार्टी द्वारा की गई राजनीतिक लामबंदी का नेतृत्व शूद्रों ने किया था। 1935 के प्रांतीय चुनावों तक, मद्रास प्रेसीडेंसी की विधायिका में पहले से ही दो-तिहाई गैर-ब्राह्मण थे। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत में पिछड़ी जाति के लिए पहला आरक्षण 1921 में मद्रास में जस्टिस पार्टी के तहत लागू किया गया था।

OBC के लिए आरक्षण क्या है

संविधान का अनुच्छेद 16(4) पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है, जिनका राज्य में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। समय-समय पर जारी कार्यकारी निर्देशों के माध्यम से अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण प्रदान किया जाता है, जिसमें कानून का बल है, जैसा कि इंदिरा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित किया गया था।

वर्तमान निर्देशों के अनुसार अखिल भारतीय स्तर पर सीधी भर्ती के मामले में खुली प्रतियोगिता द्वारा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को क्रमशः 15%, 7.5% और 27% की दर से आरक्षण प्रदान किया जाता है। खुली प्रतियोगिता के अलावा अखिल भारतीय आधार पर सीधी भर्ती के मामले में, निर्धारित प्रतिशत क्रमशः 16.66%, 7.5% और 25.84% है।

71 मंत्रालयों/विभागों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 01.01.2014 को केंद्र सरकार के पदों और सेवाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व क्रमश: 17.35%, 8.38% और 19.28% है।

जबकि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व निर्धारित प्रतिशत के अनुसार है, अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व निम्नलिखित कारणों से निर्धारित प्रतिशत से कम है:-

• अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण केवल वर्ष 1993 से शुरू हुआ।
• ओबीसी उम्मीदवार जिन्हें 1993 तक नियुक्त किया गया है, यानी ओबीसी के लिए आरक्षण की शुरूआत से पहले, उनके प्रतिनिधित्व की गणना के लिए शामिल नहीं हैं।
• आमतौर पर रिक्तियों की घटना और ऐसी रिक्तियों को भरने के बीच एक समय अंतराल होता है, क्योंकि भर्ती एक समय लेने वाली प्रक्रिया है।

सचिव, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिशों के आधार पर, बैकलॉग आरक्षित रिक्तियों को भरने के लिए समयबद्ध कार्य योजना अगस्त 2016 तक ऐसी रिक्तियों को भरने के लिए सभी संबंधित विभागों/मंत्रालयों को दिनांक 20.11.2014 को सूचित कर दी गई है। कार्य योजना में बैकलॉग आरक्षित रिक्तियों को न भरने के कारणों का अध्ययन, यदि आवश्यक हो तो निर्धारित मानकों की समीक्षा शामिल है; विशेष भर्ती अभियान चलाना और भर्ती पूर्व प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।

OBC से जुड़ा नया संशोधन क्या है?

2018 में संसद ने संविधान में 102 वां संशोधन पारित किया था जिसमें संविधान में तीन नए अनुच्छेद शामिल किए गए थे।
• नए अनुच्छेद 338-B के ज़रिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया।
• दूसरे नया अनुच्छेद 342A जोड़ा गया जो अन्य पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची से संबंधित है।
• तीसरा नया अनुच्छेद 366(26C) सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करता है।

OBC में शामिल होने के फायदे

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उत्थान के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कई कार्यक्रम और योजनाएं चलाती हैं. ओबी श्रेणी के लोगों शिक्षण संस्थानों के साथ-साथ नौकरी में भी आरक्षण का लाभ दिया जाता है, जो इस प्रकार है-

• आईएएस और आईपीएस समेत अन्य नौकरियों और आईआईटी एवं आईआईएम जैसे सरकारी उच्च शिक्षण संस्थानों में 27 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलता है।
• यूपीएससी सिविल सर्विस समेत अन्य परीक्षाओं में अधिकतर उम्रसीमा में छूट दी जाती है।
• ओबीसी श्रेणी के छात्रों को आम छात्रों की तुलना में परीक्षा देने के अधिक मौके मिलते हैं।
• परीक्षा पास करने के लिए या एडमिशन के लिए तय न्यूनतम कट-ऑफ मार्क्स में उन्हें छूट दी जाती है, ताकि वे इम्तहान पास कर सकें.

हमारा अंतिम शब्द

तो दोस्तों आसा करता हु की आपको हमारे दिया गया जानकारी (भारत में OBC की जनसंख्या कितनी है – Bharat Me OBC ki Jansankhya Kitni Hai) आपको पसंद आया होगा. अगर आपको पसंद आये तो हमें नीच Comments करके बताये और अपने दोस्तों के साथ और Social Media Platforms पर Share जरूर करे. धन्यवाद!

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